श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.43.20 
 
 
निहतस्यास्य सत्त्वस्य जाम्बूनदमयत्वचि।
शष्पबृस्यां विनीतायामिच्छाम्यहमुपासितुम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  मृत्यु को प्राप्त हुए इस पशु की त्वचा जो जाम्बूनद-सोने से बनी है, उससे सुसज्जित इस घास-फूस की चटाई पर मैं आपके साथ बैठना चाहती हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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