श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.43.15 
 
 
अहो रूपमहो लक्ष्मी: स्वरसम्पच्च शोभना।
मृगोऽद्भुतो विचित्राङ्गो हृदयं हरतीव मे॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  देखो, इस मृग का रूप कितना अद्भुत है। इसकी सुंदरता अवर्णनीय है। इसकी वाणी भी बहुत सुरीली है। अपने विचित्र अंगों के साथ यह अद्भुत मृग मेरा मन मोह लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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