श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.43.14 
 
 
नानावर्णविचित्राङ्गो रत्नभूतो ममाग्रत:।
द्योतयन् वनमव्यग्रं शोभते शशिसंनिभ:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  नाना प्रकार के रंगों से सजे हुए इसके अंग विचित्र से लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे यह अंगों से ही बना हुआ हो। मेरे सामने निर्भय एवं शांत भाव से स्थित होकर इस वन को प्रकाशित करता हुआ यह चाँद के समान शोभा पा रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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