श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 11-13
 
 
श्लोक  3.43.11-13 
 
 
इहाश्रमपदेऽस्माकं बहव: पुण्यदर्शना:।
मृगाश्चरन्ति सहिताश्चमरा: सृमरास्तथा॥ ११॥
ऋक्षा: पृषतसङ्घाश्च वानरा: किन्नरास्तथा।
विहरन्ति महाबाहो रूपश्रेष्ठा महाबला:॥ १२॥
न चान्य: सदृशो राजन् दृष्ट: पूर्वं मृगो मया।
तेजसा क्षमया दीप्त्या यथायं मृगसत्तम:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन्! महाबाहो! हमारे आश्रम के इस पावन स्थान पर बहुत-से मृग, सृमर (काली पूँछवाली चवँरी गाय), चमर (सफेद पूँछवाली चवँरी गाय), रीछ, चितकबरे मृगों के झुंड, वानर तथा सुन्दर रूपवाले महाबली किन्नर विचरण करते हैं। लेकिन आज से पहले मैंने ऐसा तेजस्वी, सौम्य और दीप्तिमान मृग नहीं देखा था, जैसा कि यह श्रेष्ठ मृग दिखाई दे रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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