श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.43.10 
 
 
आर्यपुत्राभिरामोऽसौ मृगो हरति मे मन:।
आनयैनं महाबाहो क्रीडार्थं नो भविष्यति॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  आर्यपुत्र! यह मृग दिखने में बहुत ही सुंदर है। इसने मेरे मन को मोह लिया है। हे महाबाहु! इसे हमारे लिए पकड़कर ले आइए। यह हमारे मनोरंजन के लिए रहेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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