श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 1-2
 
 
श्लोक  3.43.1-2 
 
 
सा तं सम्प्रेक्ष्य सुश्रोणी कुसुमानि विचिन्वती।
हेमराजतवर्णाभ्यां पार्श्वाभ्यामुपशोभितम् ॥ १ ॥
प्रहृष्टा चानवद्याङ्गी मृष्टहाटकवर्णिनी।
भर्तारमपि चक्रन्द लक्ष्मणं चैव सायुधम्॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  वह हिरण सुनहले और चाँदी के समान चमकदार पार्श्वों से सुशोभित था। शुद्ध सोने जैसी चमक और निर्दोष अंगों वाली सुंदर सीता फूल चुनते-चुनते ही उस हिरण को देखकर मन-ही-मन बहुत खुश हुईं और अपने पति श्रीराम और देवर लक्ष्मण को हथियार लेकर आने के लिए पुकारने लगीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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