श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.42.6 
 
 
एतच्छौटीर्ययुक्तं ते मच्छन्दवशवर्तिन:।
इदानीमसि मारीच: पूर्वमन्यो हि राक्षस:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  तुमने वीरता की बात कही है क्योंकि अब तुम मेरी इच्छा के वश में हो गये हो। इस समय तुम सच में मारीच ही हो। पहले तुम पर किसी दूसरे राक्षस का प्रभाव था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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