श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  3.42.35 
 
 
अदृष्टपूर्वं दृष्ट्वा तं नानारत्नमयं मृगम्।
विस्मयं परमं सीता जगाम जनकात्मजा॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  देवी सीता ने इससे पहले ऐसा हिरण कभी नहीं देखा था। वह कई प्रकार के रत्नों से बना हुआ प्रतीत होता था। उसे देखकर जनक की पुत्री सीता को बहुत आश्चर्य हुआ।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे द्विचत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें बयालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ २॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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