देवी सीता ने इससे पहले ऐसा हिरण कभी नहीं देखा था। वह कई प्रकार के रत्नों से बना हुआ प्रतीत होता था। उसे देखकर जनक की पुत्री सीता को बहुत आश्चर्य हुआ।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे द्विचत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें बयालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ २॥