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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना
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श्लोक 27
श्लोक
3.42.27
मृगयूथैरनुगत: पुनरेव निवर्तते।
सीतादर्शनमाकांक्षन् राक्षसो मृगतां गत:॥ २७॥
अनुवाद
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तत्पश्चात् झुंड-के-झुंड मृगों को साथ लिये फिर लौट आता था। उस मृगरूपधारी राक्षस के मन में केवल यह अभिलाषा थी कि किसी तरह सीता की दृष्टि मुझ पर पड़ जाय।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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