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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना
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श्लोक 22
श्लोक
3.42.22
रौप्यैर्बिन्दुशतैश्चित्रं भूत्वा च प्रियदर्शन:।
विटपीनां किसलयान् भक्षयन् विचचार ह॥ २२॥
अनुवाद
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रुपेले छोटे-छोटे बिंदुओं से चित्रित हिरण बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था। वह पेड़ों की कोमल कलियों को खाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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