श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  3.42.20-21 
 
 
वनं प्रज्वलयन् रम्यं रामाश्रमपदं च तत्।
मनोहरं दर्शनीयं रूपं कृत्वा स राक्षस:॥ २०॥
प्रलोभनार्थं वैदेह्या नानाधातुविचित्रितम्।
विचरन् गच्छते सम्यक् शाद्वलानि समन्तत:॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  सीता को लुभाने के लिए राक्षस ने नाना प्रकार की धातुओं से चित्रित मनोहर और दर्शनीय रूप बनाया। वह उस रमणीय वन और श्रीराम के उस आश्रम को प्रकाशित करता हुआ सब ओर उत्तम घासों को चरता और विचरता फिरने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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