श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  3.42.19 
 
 
मनोहरस्निग्धवर्णो रत्नैर्नानाविधैर्वृत:।
क्षणेन राक्षसो जातो मृग: परमशोभन:॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  उसकी देह की कान्ति अत्यंत मनोहारी और चिकनी थी। वह नाना प्रकार की रत्नजड़ित बँदकियों से सुशोभित दिखाई दे रहा था। क्षण भर में ही राक्षस मारीच परम शोभनीय मृग बन गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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