श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना  »  श्लोक 15-17
 
 
श्लोक  3.42.15-17 
 
 
स तु रूपं समास्थाय महदद्भुतदर्शनम्॥ १५॥
मणिप्रवरशृङ्गाग्र: सितासितमुखाकृति:।
रक्तपद्मोत्पलमुख इन्द्रनीलोत्पलश्रवा:॥ १६॥
किंचिदभ्युन्नतग्रीव इन्द्रनीलनिभोदर:।
मधूकनिभपार्श्वश्च कञ्जकिञ्जल्कसंनिभ:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय उसका रूप अत्यंत अद्भुत और आकर्षक था। उसके सींगों के ऊपरी सिरे इंद्रनील नामक बहुमूल्य मणि से बने प्रतीत हो रहे थे। उसके चेहरे पर सफेद और काले रंग की बूँदें थीं, और उसके मुख का रंग लाल कमल के समान था। उसके कान नीले कमल के समान थे और उसकी गर्दन थोड़ी ऊँची थी। उसका पेट इंद्रनील मणि की चमक से जगमगा रहा था। उसके शरीर के किनारे महुआ के फूल के समान सफेद थे, और उसका सुनहरा शरीर कमल के पराग की तरह सुंदर था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.