श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना  »  श्लोक 14-15h
 
 
श्लोक  3.42.14-15h 
 
 
स रावणवच: श्रुत्वा मारीचो राक्षसस्तदा॥ १४॥
मृगो भूत्वाऽऽश्रमद्वारि रामस्य विचचार ह।
 
 
अनुवाद
 
  रावण की आज्ञा सुनते ही राक्षस मारीच तुरंत हिरण का रूप धारण करके श्रीराम के आश्रम के बाहर घूमने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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