श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 41: मारीच का रावण को विनाश का भय दिखाकर पुनः समझाना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.41.7 
 
 
अमात्यै: कामवृत्तो हि राजा कापथमाश्रित:।
निग्राह्य: सर्वथा सद्भि: स निग्राह्यो न गृह्यसे॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  अमात्यो! कामवश स्वेच्छाचारी होकर राजपथ से विचलित राजा को हर प्रकार से रोकना चाहिए। आप भी उसे रोकने में सक्षम हैं, किन्तु मन्त्रीगण उसे रोक नहीं रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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