श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 41: मारीच का रावण को विनाश का भय दिखाकर पुनः समझाना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.41.4 
 
 
शत्रवस्तव सुव्यक्तं हीनवीर्या निशाचर।
इच्छन्ति त्वां विनश्यन्तमुपरुद्धं बलीयसा॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  शत्रुओं, तुम्हारे दुर्बल शत्रु तुम्हें अच्छी तरह से जान चुके हैं। वे तुम्हें किसी बलवान से भिड़ाकर नष्ट होते देखना चाहते हैं॥ ४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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