निवार्यमाणस्तु मया हितैषिणा
न मृष्यसे वाक्यमिदं निशाचर।
परेतकल्पा हि गतायुषो नरा
हितं न गृह्णन्ति सुहृद्भिरीरितम्॥ २०॥
अनुवाद
हे निशाचर! मैं तुम्हारा हितैषी हूँ, इसीलिए मैं तुम्हें पापकर्म से रोक रहा हूँ। किंतु तुम्हें मेरी बात सहन नहीं होती है। यह सच है कि जिनकी आयु समाप्त हो जाती है, वे मरणासन्न पुरुष अपने मित्रों की कही हुई हितकर बातें भी स्वीकार नहीं करते हैं।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे एकचत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ १॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें इकतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ १॥