श्रीरामचन्द्रजी मुझे मारकर तुम्हारा भी शीघ्र ही वध कर देंगे। इस तरह से मेरी मृत्यु अवश्यंभावी है, इसलिए मैं श्रीराम के हाथों मरना पसंद करूँगा। क्योंकि शत्रु के द्वारा युद्ध में मारा जाना ही गौरव की बात है, न कि तुम्हारे जैसे राजा के हाथों जबरदस्ती मृत्युदण्ड पाना।