श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 41: मारीच का रावण को विनाश का भय दिखाकर पुनः समझाना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.41.17 
 
 
मां निहत्य तु रामोऽसावचिरात् त्वां वधिष्यति।
अनेन कृतकृत्योऽस्मि म्रिये चाप्यरिणा हत:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचन्द्रजी मुझे मारकर तुम्हारा भी शीघ्र ही वध कर देंगे। इस तरह से मेरी मृत्यु अवश्यंभावी है, इसलिए मैं श्रीराम के हाथों मरना पसंद करूँगा। क्योंकि शत्रु के द्वारा युद्ध में मारा जाना ही गौरव की बात है, न कि तुम्हारे जैसे राजा के हाथों जबरदस्ती मृत्युदण्ड पाना।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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