तदनंतर वे दोनों राजकुमार, जिनके धनुष सोने से सुशोभित थे, राक्षस का वध करके मैथिली सीता को साथ लेकर उस महान वन में आनंदमग्न हो विचरण करने लगे। वे दोनों भाई आकाश में स्थित चंद्रमा और सूर्य की भांति प्रतीत हो रहे थे।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे चतुर्थ: सर्ग:॥ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें चौथा सर्ग पूरा हुआ॥ ४॥