श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 4: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध का वध  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  3.4.20-21 
 
 
इतो वसति धर्मात्मा शरभङ्ग: प्रतापवान्॥ २०॥
अध्यर्धयोजने तात महर्षि: सूर्यसंनिभ:।
तं क्षिप्रमभिगच्छ त्वं स ते श्रेयोऽभिधास्यति॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  "तथास्तु! वत्स! यहाँ से लगभग तीन मील दूर सूर्य के समान तेजस्वी और धर्मात्मा महामुनि शरभंग रहते हैं। तुम शीघ्र ही उनके पास जाओ, वे तुम्हारे कल्याण की सलाह देंगे।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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