श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 4: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध का वध  »  श्लोक 19-20h
 
 
श्लोक  3.4.19-20h 
 
 
तव प्रसादान्मुक्तोऽहमभिशापात् सुदारुणात्॥ १९॥
भुवनं स्वं गमिष्यामि स्वस्ति वोऽस्तु परंतप।
 
 
अनुवाद
 
  शत्रुओं को कष्ट देने वाले रघुवीर! आपकी कृपा से आज मैं उस भयंकर शाप से मुक्त हो गया हूँ। अब आपका मंगल हो, मैं अपने लोक को जाऊँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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