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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 39: मारीच का रावण को समझाना
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श्लोक 17
श्लोक
3.39.17
राममेव हि पश्यामि रहिते राक्षसेश्वर।
दृष्ट्वा स्वप्नगतं राममुद्भ्रमामि विचेतन:॥ १७॥
अनुवाद
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राक्षसराज रावण! जब भी मैं एकांत में बैठता हूँ तब मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ श्रीराम के ही दर्शन होते हैं। उन्हें सपने में देखकर मैं व्याकुल और बेसुध-सा हो उठता हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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