श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 38: श्रीराम की शक्ति के विषय में अपना अनुभव बताकर मारीच का रावण को उनका अपराध करने से मना करना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.38.25 
 
 
हर्म्यप्रासादसम्बाधां नानारत्नविभूषिताम्।
द्रक्ष्यसि त्वं पुरीं लङ्कां विनष्टां मैथिलीकृते॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  मैथिली नारी सीता के लिए तुम्हें ऊँचे-ऊँचे महलों और राजाओं के भवनों से सजी हुई तथा तरह-तरह के रत्नों से सुशोभित लंकापुरी का विनाश भी अपनी आँखों से देखना पड़ेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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