श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 38: श्रीराम की शक्ति के विषय में अपना अनुभव बताकर मारीच का रावण को उनका अपराध करने से मना करना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.38.17 
 
 
तेन दृष्ट: प्रविष्टोऽहं सहसैवोद्यतायुध:।
मां तु दृष्ट्वा धनु: सज्यमसम्भ्रान्तश्चकार ह॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘भीतर प्रवेश करते ही श्रीरामचन्द्रजीकी दृष्टि मुझपर पड़ी। मुझे देखते ही उन्होंने सहसा धनुष उठा लिया और बिना किसी घबराहटके उसपर डोरी चढ़ा दी॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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