श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.37.8 
 
 
न च पित्रा परित्यक्तो नामर्याद: कथंचन।
न लुब्धो न च दु:शीलो न च क्षत्रियपांसन:॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचन्द्रजी न तो पिता द्वारा त्यागे या निकाले गये हैं, न उन्होंने धर्म की मर्यादा का किसी तरह त्याग किया है और न ही वे लोभी, दूषित आचार-विचार वाले या क्षत्रियकुल-कलंक ही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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