न च पित्रा परित्यक्तो नामर्याद: कथंचन।
न लुब्धो न च दु:शीलो न च क्षत्रियपांसन:॥ ८॥
अनुवाद
श्रीरामचन्द्रजी न तो पिता द्वारा त्यागे या निकाले गये हैं, न उन्होंने धर्म की मर्यादा का किसी तरह त्याग किया है और न ही वे लोभी, दूषित आचार-विचार वाले या क्षत्रियकुल-कलंक ही हैं।