श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.37.25 
 
 
अहं तु मन्ये तव न क्षमं रणे
समागमं कोसलराजसूनुना।
इदं हि भूय: शृणु वाक्यमुत्तमं
क्षमं च युक्तं च निशाचराधिप॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  निशाचरराज! मैं यह मानता हूँ कि तुम्हारा युद्ध करना कोसलराज के पुत्र भगवान श्री रामचंद्र जी के साथ उचित नहीं होगा। अब एक बात और सुनो, यह तुम्हारे लिए बहुत ही उत्तम, उचित और उपयुक्त होगी।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे सप्तत्रिंश: सर्ग:॥ ३७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें सैंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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