वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना
»
श्लोक 21
श्लोक
3.37.21
किमुद्यमं व्यर्थमिमं कृत्वा ते राक्षसाधिप।
दृष्टश्चेत् त्वं रणे तेन तदन्तमुपजीवितम्॥ २१॥
अनुवाद
play_arrowpause
राक्षसो! यह व्यर्थ का प्रयास करने से तुम्हें क्या प्राप्ति होगी? जिस दिन युद्ध में तुम्हारे ऊपर श्रीराम की दृष्टि पड़ेगी, उस दिन तुम अपने जीवन का अंत मान लेना।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.