श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.37.2 
 
 
सुलभा: पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिन:।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन्! प्रिय वचन बोलने वाले तो हर जगह आसानी से मिल जाते हैं। परंतु जो अप्रिय होने पर भी हितकर हो, ऐसी बात कहने वाला और सुनने वाला दोनों मिलना बहुत मुश्किल है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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