सुलभा: पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिन:।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:॥ २॥
अनुवाद
राजन्! प्रिय वचन बोलने वाले तो हर जगह आसानी से मिल जाते हैं। परंतु जो अप्रिय होने पर भी हितकर हो, ऐसी बात कहने वाला और सुनने वाला दोनों मिलना बहुत मुश्किल है।