वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना
»
श्लोक 18
श्लोक
3.37.18
अप्रमेयं हि तत्तेजो यस्य सा जनकात्मजा।
न त्वं समर्थस्तां हर्तुं रामचापाश्रयां वने॥ १८॥
अनुवाद
play_arrowpause
रामचंद्रजी की धनुष की सुरक्षा में रहनेवाली जनक की पुत्री सीता का तेज अप्रमेय है, इसलिए तुममें इतनी शक्ति नहीं है कि वन में उनका अपहरण कर सकें।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.