श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.37.18 
 
 
अप्रमेयं हि तत्तेजो यस्य सा जनकात्मजा।
न त्वं समर्थस्तां हर्तुं रामचापाश्रयां वने॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  रामचंद्रजी की धनुष की सुरक्षा में रहनेवाली जनक की पुत्री सीता का तेज अप्रमेय है, इसलिए तुममें इतनी शक्ति नहीं है कि वन में उनका अपहरण कर सकें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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