पिताजी! धनुष ही जिसका फैला हुआ दीप्तिमान मुख है और बाण ही प्रभा है, जो अमर्ष से भरा हुआ है, धनुष और बाण धारण किए खड़ा है, रोषवश तीखे स्वभाव का परिचय देता है और शत्रुसेना के प्राण लेने में समर्थ है, उस रामरूपी यमराज के पास तुम्हें यहाँ अपने राज्यसुख और प्यारे प्राणों के मोह को छोड़कर सहसा नहीं जाना चाहिए।