श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.37.10 
 
 
वञ्चितं पितरं दृष्ट्वा कैकेय्या सत्यवादिनम्।
करिष्यामीति धर्मात्मा तत: प्रव्रजितो वनम्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मात्मा श्रीराम ने जब देखा कि रानी कैकेयी ने पिता को धोखे में डालकर उनके वनवास का वर माँग लिया है, तो उन्होंने मन-ही-मन यह निश्चय किया कि वे अपने पिता को सत्यवादी बनाएँगे। अर्थात् वे पिता के दिए हुए वचन को पूरा करेंगे। इस निश्चय के अनुसार वे स्वयं ही वन को चल दिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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