श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 36: रावण का मारीच से श्रीराम के अपराध बताकर उनकी पत्नी सीता के अपहरण में सहायता के लिये कहना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.36.24 
 
 
स रावणं त्रस्तविषण्णचेता
महावने रामपराक्रमज्ञ:।
कृताञ्जलिस्तत्त्वमुवाच वाक्यं
हितं च तस्मै हितमात्मनश्च॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण को श्रीरामचन्द्रजी के पराक्रम का ज्ञान हो गया था, इसलिए वह मन-ही-मन अत्यन्त भयभीत और दुःखी हो गया। उसने हाथ जोड़कर रावण से सच्ची बात कही, जो रावण और स्वयं उसके लिए भी हितकर थी।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे ष ट‍‍्त्रिंश : सर्ग: ॥ ३ ६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें छत्तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ३ ६॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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