स रावणं त्रस्तविषण्णचेता
महावने रामपराक्रमज्ञ:।
कृताञ्जलिस्तत्त्वमुवाच वाक्यं
हितं च तस्मै हितमात्मनश्च॥ २४॥
अनुवाद
रावण को श्रीरामचन्द्रजी के पराक्रम का ज्ञान हो गया था, इसलिए वह मन-ही-मन अत्यन्त भयभीत और दुःखी हो गया। उसने हाथ जोड़कर रावण से सच्ची बात कही, जो रावण और स्वयं उसके लिए भी हितकर थी।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे ष ट्त्रिंश : सर्ग: ॥ ३ ६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें छत्तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ३ ६॥