श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 36: रावण का मारीच से श्रीराम के अपराध बताकर उनकी पत्नी सीता के अपहरण में सहायता के लिये कहना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.36.20 
 
 
ततस्तयोरपाये तु शून्ये सीतां यथासुखम्।
निराबाधो हरिष्यामि राहुश्चन्द्रप्रभामिव॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनन्तर देवों और दानवों के युद्ध करने पर जब वे दोनों देवाधिदेव इंद्र एवं असुरों के राजा बालि से दूर हो जाएँगे, तब मैं बिना किसी रुकावट के सुनसान आश्रम से सीता को वैसी ही सुखपूर्वक हर लाऊँगा जैसे राहु चंद्रमा की प्रभा को हर लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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