वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 36: रावण का मारीच से श्रीराम के अपराध बताकर उनकी पत्नी सीता के अपहरण में सहायता के लिये कहना
»
श्लोक 20
श्लोक
3.36.20
ततस्तयोरपाये तु शून्ये सीतां यथासुखम्।
निराबाधो हरिष्यामि राहुश्चन्द्रप्रभामिव॥ २०॥
अनुवाद
play_arrowpause
तदनन्तर देवों और दानवों के युद्ध करने पर जब वे दोनों देवाधिदेव इंद्र एवं असुरों के राजा बालि से दूर हो जाएँगे, तब मैं बिना किसी रुकावट के सुनसान आश्रम से सीता को वैसी ही सुखपूर्वक हर लाऊँगा जैसे राहु चंद्रमा की प्रभा को हर लेता है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.