श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 36: रावण का मारीच से श्रीराम के अपराध बताकर उनकी पत्नी सीता के अपहरण में सहायता के लिये कहना  »  श्लोक 11-14h
 
 
श्लोक  3.36.11-14h 
 
 
अशील: कर्कशस्तीक्ष्णो मूर्खो लुब्धोऽजितेन्द्रिय:॥ ११॥
त्यक्तधर्मा त्वधर्मात्मा भूतानामहिते रत:।
येन वैरं विनारण्ये सत्त्वमास्थाय केवलम्॥ १२॥
कर्णनासापहारेण भगिनी मे विरूपिता।
अस्य भार्यां जनस्थानात् सीतां सुरसुतोपमाम्॥ १३॥
आनयिष्यामि विक्रम्य सहायस्तत्र मे भव।
 
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे सहायता के साथ मैं उसे घसीटकर ले आऊँगा। वह है तो अशील, कर्कश, तीखा, मूर्ख, लोभी, अजितेन्द्रिय, धर्म त्यागी और अधर्मात्मा भी है। जिस दुष्ट ने मेरे साथ बिना किसी वैर-विरोध के अपनी शक्ति का प्रयोग कर मेरी बहन की नाक-कान काटकर उसे विकृत कर दिया, उसी के बदले में मैं भी बलपूर्वक उसकी सुंदर पत्नी सीता को उसके घर से उठाकर ले आऊँगा। तुम मुझे इस कार्य में सहायता देना।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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