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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 36: रावण का मारीच से श्रीराम के अपराध बताकर उनकी पत्नी सीता के अपहरण में सहायता के लिये कहना
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श्लोक 1
श्लोक
3.36.1
मारीच श्रूयतां तात वचनं मम भाषत:।
आर्तोऽस्मि मम चार्तस्य भवान् हि परमा गति:॥ १॥
अनुवाद
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मारीच, तुम मेरी बात सुनो। मैं बहुत दुःखी हूँ और इस दुःख की अवस्था में तुम मेरे सबसे बड़े सहारे हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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