श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.35.6 
 
 
कामगं रथमास्थाय काञ्चनं रत्नभूषितम्।
पिशाचवदनैर्युक्तं खरै: कनकभूषणै:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  वह रथ इच्छानुसार चलने वाला था और सोने से बना हुआ था। उसे रत्नों से सजाया गया था। उसमें सोने के हार्नेस से सजे हुए गधे जुते थे, जिनके मुंह राक्षसों जैसे थे। रावण उस पर सवार होकर चला गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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