वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना
»
श्लोक 34
श्लोक
3.35.34
स तु तेन प्रहर्षेण द्विगुणीकृतविक्रम:।
अमृतानयनार्थं वै चकार मतिमान् मतिम्॥ ३४॥
अनुवाद
play_arrowpause
उस महान् हर्ष से बुद्धिमान् गरुड़ का पराक्रम द्विगुणित हो गया। अब वह अमृत ले आने के लिए दृढ़ निश्चय कर चुका था।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.