श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना  »  श्लोक 27-28h
 
 
श्लोक  3.35.27-28h 
 
 
तत्रापश्यत् स मेघाभं न्यग्रोधं मुनिभिर्वृतम्॥ २७॥
समन्ताद् यस्य ता: शाखा: शतयोजनमायता:।
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ समुद्र तट पर एक बरगद का वृक्ष दिखाई दिया, जो काले बादलों की तरह घने आश्रय के चलते मेघों के समान प्रतीत हो रहा था। उसके नीचे चारो ओर मुनि लोग निवास कर रहे थे। उस वृक्ष की प्रसिद्ध शाखाएँ चारो दिशाओं में सौ योजन तक फैली हुई थीं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.