श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना  »  श्लोक 26-27h
 
 
श्लोक  3.35.26-27h 
 
 
तं समं सर्वत: स्निग्धं मृदुसंस्पर्शमारुतम्॥ २६॥
अनूपे सिन्धुराजस्य ददर्श त्रिदिवोपमम्।
 
 
अनुवाद
 
  फिर उसने सिंधुराज के तट पर स्थित एक ऐसा स्थान देखा, जो स्वर्ग के तुल्य सुंदर था, जहाँ हर जगह समतल और चमकदार रेत थी। वहाँ हलकी-हल्की हवा बह रही थी, जिसका स्पर्श अत्यंत कोमल था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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