श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  3.35.19-20 
 
 
पाण्डुराणि विशालानि दिव्यमाल्ययुतानि च।
तूर्यगीताभिजुष्टानि विमानानि समन्तत:॥ १९॥
तपसा जितलोकानां कामगान्यभिसम्पतन्।
गन्धर्वाप्सरसश्चैव ददर्श धनदानुज:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  कुबेर के छोटे भाई रावण ने आकाश मार्ग से यात्रा करते हुए हर ओर बहुत से सफेद रंग के विमान देखे। वे इच्छानुसार चलनेवाले विशाल विमान उन पुण्यात्मा पुरुषों के थे, जिन्होंने तपस्या से पुण्यलोकों पर विजय पायी थी। उन विमानों को दिव्य पुष्पों से सजाया गया था और उन विमानों के भीतर से गीत-वाद्य की ध्वनि प्रकट हो रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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