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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना
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श्लोक 18
श्लोक
3.35.18
हंसक्रौञ्चप्लवाकीर्णं सारसै: सम्प्रसादितम्।
वैदूर्यप्रस्तरं स्निग्धं सान्द्रं सागरतेजसा॥ १८॥
अनुवाद
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सिंधु नदी का वह तट समुद्र के तेज और उसकी लहरों के स्पर्श से चमकदार और ठंडा था। वहाँ हंस, क्रौंच और मेढ़क हर जगह फैले हुए थे और सारस नदी की शोभा बढ़ा रहे थे। उस तट पर वैदूर्य मणि के समान काले रंग के पत्थर दिखाई दे रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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