दिव्य आभूषणों और पुष्पमालाओं से सुशोभित, दिव्य रूप धारण करने वाली सहस्रों अप्सराएँ वहाँ चारों ओर विचरण कर रही थीं। कितनी ही शोभाशाली देवांगनाएँ उस सिंधु तट का सेवन करती हुई आस-पास बैठी थीं। देवताओं और दानवों के समूह और अमृत का पान करने वाले देवगण वहाँ विचरण कर रहे थे।