श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.35.14 
 
 
अत्यन्तनियताहारै: शोभितं परमर्षिभि:।
नागै: सुपर्णैर्गन्धर्वै: किंनरैश्च सहस्रश:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  उस स्थान की बड़ी शोभा थी महर्षियों, नागों, सुपर्णों (गरुड़ों), गन्धर्वों और सहस्रों किन्नरों से, जो अपने आहार-विहार में अत्यधिक नियमित थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.