श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  3.35.11-12 
 
 
सशैलसागरानूपं वीर्यवानवलोकयन्।
नानापुष्पफलैर्वृक्षैरनुकीर्णं सहस्रश:॥ ११॥
शीतमङ्गलतोयाभि: पद्मिनीभि: समन्तत:।
विशालैराश्रमपदैर्वेदिमद्भिरलंकृतम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  सशक्त रावण पर्वतमय समुद्र के किनारे पहुँचकर उसकी सुंदरता को निहारने लगा। समुद्र का वह तट तरह-तरह के फूलों और फलों वाले हजारों वृक्षों से भरा हुआ था। चारों ओर मंगलकारी ठंडे पानी से भरी हुई कमल की झीलें और वेदिकाओं से सजे हुए विशाल आश्रम उस समुद्र तट की शोभा बढ़ा रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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