निशम्य रामेण शरैरजिह्मगै-
र्हताञ्जनस्थानगतान् निशाचरान्।
खरं च दृष्ट्वा निहतं च दूषणं
त्वमद्य कृत्यं प्रतिपत्तुमर्हसि॥ २६॥
अनुवाद
श्रीराम ने अपने सीधे चलने वाले बाणों से जनस्थान के रहने वाले राक्षसों और खर तथा दूषण का अंत कर दिया है, यह सब देखने और सुनने के बाद अब तुम अपना कर्तव्य तय कर लो।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे चतुस्त्रिंश: सर्ग: ॥ ३ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें चौंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ३ ४॥