देवता, गंधर्व, भूत और महात्मा ऋषि भी उसे जीतने में असमर्थ थे। समरभूमि में वह मुंह फैलाकर खड़े हुए यमराज की भाँति भयानक जान पड़ता था। देवताओं और असुरों के संग्राम के अवसरों पर उसके शरीर में वज्र और अशनि के जो घाव हुए थे, उनके चिह्न अब तक विद्यमान थे। उसकी छाती में ऐरावत हाथी ने जो अपने दाँत गड़ाये थे, उसके निशान अब भी दिखायी देते थे।