श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 32: शूर्पणखा का लंका में रावण के पास जाना  »  श्लोक 6-7
 
 
श्लोक  3.32.6-7 
 
 
देवगन्धर्वभूतानामृषीणां च महात्मनाम्।
अजेयं समरे घोरं व्यात्ताननमिवान्तकम्॥ ६॥
देवासुरविमर्देषु वज्राशनिकृतव्रणम्।
ऐरावतविषाणाग्रैरुत्कृष्टकिणवक्षसम्॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  देवता, गंधर्व, भूत और महात्मा ऋषि भी उसे जीतने में असमर्थ थे। समरभूमि में वह मुंह फैलाकर खड़े हुए यमराज की भाँति भयानक जान पड़ता था। देवताओं और असुरों के संग्राम के अवसरों पर उसके शरीर में वज्र और अशनि के जो घाव हुए थे, उनके चिह्न अब तक विद्यमान थे। उसकी छाती में ऐरावत हाथी ने जो अपने दाँत गड़ाये थे, उसके निशान अब भी दिखायी देते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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