श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 32: शूर्पणखा का लंका में रावण के पास जाना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.32.5 
 
 
आसीनं सूर्यसंकाशे काञ्चने परमासने।
रुक्मवेदिगतं प्राज्यं ज्वलन्तमिव पावकम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण अपने दिव्य स्वर्ण सिंहासन पर बैठा था, जो सूर्य की तरह चमक रहा था। जैसे सोने की वेदी पर घी की आहुति से अग्नि प्रज्वलित होती है, उसी प्रकार रावण अपने स्वर्ण सिंहासन पर शोभा पा रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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