श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 32: शूर्पणखा का लंका में रावण के पास जाना  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  3.32.17-18h 
 
 
दशवर्षसहस्राणि तपस्तप्त्वा महावने॥ १७॥
पुरा स्वयंभुवे धीर: शिरांस्युपजहार य:।
 
 
अनुवाद
 
  रावण ने पूर्वकाल में दस हज़ार साल तक एक बड़े वन में तपस्या की थी और अपनी तपस्या के बल से ब्रह्माजी को अपने सिर भेंट कर दिए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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