श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.31.5 
 
 
न हि मे विप्रियं कृत्वा शक्यं मघवता सुखम्।
प्राप्तुं वैश्रवणेनापि न यमेन च विष्णुना॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  इंद्र, यम, कुबेर और विष्णु भी मेरा अपमान करके चैन से नहीं रह सकेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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