चापापहारे भुजवेगपङ्के
शरोर्मिमाले सुमहाहवौघे।
न रामपातालमुखेऽतिघोरे
प्रस्कन्दितुं राक्षसराज युक्तम्॥ ४८॥
अनुवाद
राक्षसराज! श्रीराम एक ऐसे विशाल और गहरे महासागर के समान हैं जो पाताल लोक तक फैला हुआ है। उनका धनुष उस महासागर में रहने वाले एक विशाल ग्राह के समान है, उनकी भुजाओं का वेग कीचड़ की तरह है, उनके बाण लहरों की माला की तरह हैं और महान युद्ध उसकी अथाह जलराशि के समान है। उनके अत्यंत भयानक मुख अर्थात बड़वानल में कूद पड़ना तुम्हारे लिए कदापि उचित नहीं है।